Shardiya Navratri Puja Importance: भारतीय संस्कृति में नवरात्रि का विशेष महत्व होता है। साल में चार नवरात्रि आती हैं, जिनमें चैत्र और शारदीय नवरात्रि मुख्य मानी जाती हैं। शारदीय नवरात्रि आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि तक मनाई जाती है। इन नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधिवत पूजा की जाती है। विजयादशमी या दशहरा इसी नवरात्रि के अंत में मनाया जाता है, लेकिन प्रश्न उठता है कि आखिर शारदीय नवरात्रि क्यों मनाई जाती है और इसकी परंपरा कब और कैसे प्रारंभ हुई? आइए इस विषय को ऐतिहासिक, धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से समझें।
“नवरात्रि” शब्द का अर्थ है नौ रातें। यह पर्व देवी दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों की आराधना का प्रतीक है। शास्त्रों में कहा गया है कि जब-जब धरती पर अधर्म बढ़ता है, तब-तब देवी ने अलग-अलग रूप धारण कर दुष्टों का संहार किया और धर्म की रक्षा की। शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि इस समय देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक असुर का वध कर देवताओं को विजय दिलाई थी। महिषासुर अत्यंत बलवान और अहंकारी था। उसने तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त किया कि कोई भी देवता उसे नहीं मार सकेगा। इस वरदान से वह इतना शक्तिशाली हो गया कि देवताओं को परास्त कर दिया।
तब सभी देवताओं की ऊर्जा से एक दिव्य शक्ति का उद्भव हुआ, जिसे आदि शक्ति दुर्गा कहा गया। देवी ने नौ दिनों तक महिषासुर से युद्ध किया और दशमी के दिन उसका वध कर पृथ्वी को उसके आतंक से मुक्त कराया। इसी कारण शारदीय नवरात्रि में देवी दुर्गा की पूजा की जाती है और दशहरा को सत्य की असत्य पर विजय के रूप में मनाया जाता है।
शारदीय नवरात्रि की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि मनाने की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। मार्कंडेय पुराण और देवी भागवत पुराण में नवरात्रि की महिमा का विस्तार से वर्णन मिलता है। रामायण के अनुसार, भगवान श्रीराम ने भी रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए शारदीय नवरात्रि में देवी दुर्गा की पूजा की थी। यह प्रसंग “अकाल बोधन” के नाम से प्रसिद्ध है।
कथा के अनुसार, श्रीराम ने शारदीय नवरात्रि में 108 नीलकमल चढ़ाकर मां दुर्गा को प्रसन्न किया। तभी से इस नवरात्रि का महत्व और बढ़ गया। वहीं महाभारत में भी पांडवों द्वारा शारदीय नवरात्रि में देवी की आराधना का उल्लेख मिलता है। युद्ध से पहले अर्जुन ने देवी दुर्गा की पूजा कर विजय की कामना की थी।
प्रकृति और ऋतु परिवर्तन से संबंध
शारदीय नवरात्रि केवल धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि प्रकृति और ऋतु परिवर्तन से भी जुड़ा है। यह समय वर्षा ऋतु के अंत और शरद ऋतु के आगमन का होता है। इस ऋतु परिवर्तन में वातावरण शुद्ध और स्वच्छ हो जाता है। आयुर्वेद के अनुसार, इस समय उपवास करने से शरीर में संचित विषैले तत्व बाहर निकल जाते हैं और नई ऊर्जा प्राप्त होती है। यही कारण है कि नवरात्रि में उपवास रखने और सात्त्विक आहार ग्रहण करने की परंपरा है।
नौ देवियों की आराधना
शारदीय नवरात्रि में प्रत्येक दिन देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है:-
- शैलपुत्री: पर्वतराज हिमालय की पुत्री।
- ब्रह्मचारिणी: तपस्या का स्वरूप।
- चंद्रघंटा: सौंदर्य और वीरता का प्रतीक।
- कूष्मांडा: ब्रह्मांड की उत्पत्ति करने वाली।
- स्कंदमाता: कार्तिकेय की माता।
- कात्यायनी: महिषासुर मर्दिनी।
- कालरात्रि: दुष्टों का संहार करने वाली।
- महागौरी: शांति और सौम्यता का स्वरूप।
- सिद्धिदात्री: सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली।
नवरात्रि में इन सभी स्वरूपों की पूजा का अर्थ है कि भक्त जीवन के हर पक्ष – शक्ति, ज्ञान, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करता है।
व्रत और अनुष्ठान की परंपरा
- नवरात्रि में उपवास रखने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। यह उपवास केवल आहार में संयम का प्रतीक नहीं, बल्कि मन और आत्मा की शुद्धि का भी माध्यम है।
- पूजा के दौरान कलश स्थापना और अखंड ज्योति जलाने का विशेष महत्व है।
- घर-घर में घटस्थापना की जाती है, जो शक्ति और उर्जा का प्रतीक है।
- कन्या पूजन भी इस व्रत का प्रमुख हिस्सा है। यह परंपरा शक्ति को जीवित रूप में सम्मान देने की भावना को दर्शाती है।
- नौ दिनों तक गरबा और दुर्गा सप्तशती का पाठ भी किया जाता है।
सांस्कृतिक महत्व
- नवरात्रि केवल पूजा-पाठ का पर्व नहीं है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विविधता को भी दर्शाता है।
- गुजरात में गरबा और डांडिया की धूम रहती है।
- बंगाल में दुर्गा पूजा का भव्य आयोजन होता है।
- उत्तर भारत में रामलीला का मंचन कर दशहरा मनाया जाता है।
- दक्षिण भारत में गोलू सजाने की परंपरा है।
- इस प्रकार नवरात्रि भारतीय संस्कृति को जोड़ने वाला एक महापर्व है, जो पूरे देश को भक्ति, उत्साह और ऊर्जा से भर देता है।
नवरात्रि का सामाजिक संदेश
नवरात्रि की परंपरा हमें यह संदेश देती है कि नारी शक्ति ही सृष्टि की आधारशिला है। नौ दिन अलग-अलग रूपों में देवी की पूजा कर हम यह स्वीकार करते हैं कि स्त्री केवल कोमलता का प्रतीक नहीं, बल्कि शक्ति और सामर्थ्य का भी प्रतीक है। साथ ही, यह पर्व हमें सिखाता है कि बुराई चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, अंततः सत्य और धर्म की विजय होती है।
नौ दिनों की साधना
शारदीय नवरात्रि केवल धार्मिक आस्था का पर्व नहीं, बल्कि जीवन में संतुलन और सकारात्मकता लाने का माध्यम भी है। यह पर्व हमें शक्ति, साहस और धैर्य का संचार करता है। नौ दिनों तक देवी की साधना और उपवास हमें न केवल शारीरिक रूप से शुद्ध करता है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति भी प्रदान करता है। इस प्रकार शारदीय नवरात्रि धर्म, संस्कृति, प्रकृति और समाज का एक अद्भुत संगम है। यही कारण है कि इसे आज भी पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है और भविष्य में भी इसकी परंपरा ऐसे ही जीवित रहेगी।
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